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ख़ुद को किस्मत से तोड़ कर देखो / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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ख़ुद को क़िस्मत से तोड़ कर देखो
और इरादों से जोड़ कर देखो

आदमी दरअसल है सकते में
ठीक तरह झंझोड़ कर देखो

ख़ून बाक़ी न हो ग़रीबों में
और थोड़ा निचोड़ कर देखो

कितना खूँखार है ये बेचारा
कटघरों से तो छोड़ कर देखो

दाम मेहनत का आँकने वालो
एक पत्थर तो तोड़कर देखो