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ख़ुद को जब तक ख़ुदा न मानियेगा / सुरेश चन्द्र शौक़
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ख़ुद को जब तक ख़ुदा न मानियेगा
इश्क़ की इन्तिहा<ref>पराकाष्ठा</ref> न मानियेगा
बन्दगी का वक़ार<ref>प्रतिष्ठा</ref> लज़िम है
हर किसी को ख़ुदा न मानियेगा
है हक़ीक़त तो बस उसी की ज़ात<ref>अस्तित्व</ref>
और सब कुछ फ़साना मानियेगा
जान दे दीजियेगा दिल के लिये
अक़्ल का मशवरा न मानियेगा
दोस्त गुस्ताख़ियाँ भी करते हैं
दोस्तों का बुरा न मानियेगा
मस्लहत<ref>भलाई</ref> का तक़ाज़ा कुछ भी हो
तीरगी<ref>अँधेरा</ref> को ज़िया<ref>रौशनी</ref> न मानियेगा
आप मालिक हैं आपकी मर्ज़ी
मान लीजेगा या न मानियेगा
वही कीजेगा ‘शौक़’ दिल जो कहे
दूसरों का कहा न मानियेगा
शब्दार्थ
<references/>