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ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख / उमैर मंज़र
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ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
बाल ओ पर काट कर उड़ान में रख
सुन के दुश्मन भी दोस्त हो जाए
शहद से लफ़्ज़ भी ज़बान में रख
ये तो सच है कि वो सितमगर है
दर पर आया है तो अमान में रख
मरहले और आने वाले हैं
तीर अपना अभी कमान में रख
वक़्त सब से बड़ा मुहासिब है
बात इतनी मिरी ध्यान में रख
तजि़्करा हो तिरा ज़माने में
ऐसा पहलू कोई बयान में रख
तुझ को नस्लें ख़ुदा न कह बैठें
अपनी तस्वीर मत मकान में रख
जिस की क़िस्मत है बेघरी ‘मंज़र’
उन को तो अपने साएबान में रख