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ख़ुद पहाड़ हो जाते हैं / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
खुशबू, फूलों-फलों से भरी
पहाड़ी सी होती है माँ
इर्द-गिर्द बहती है जिसके
मीठे पानी की नदी।
तैर सकते हैं जिसमें बच्चे
प्यास बुझा सकते हैं
तोड़ सकते हैं जितने चाहें फूल
खा सकते हैं फल
और जेबें भी भर सकते हैं।
माँ वहीं रहती है
बच्चे बड़े हो जाते हैं
चले जाते हैं सुदूर
माँ बुलाती है
बादलों को भेजकर
बार-बार उन्हें
बच्चे नहीं आते
खुद पहाड़ हो जाते हैं।