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ख़ुद बन गया निवाला देखो / उत्कर्ष अग्निहोत्री
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ख़ुद बन गया निवाला देखो,
ऐसा विषधर पाला देखो।
अन्दर की लौ तो निर्मल पर,
शीशा है ये काला देखो।
दुनिया क्या है प्रश्न उठे जब,
तो मकड़ी का जाला देखो।
देखे हाथों के गुलदस्ते,
पाँवों का भी छाला देखो।
क्या-क्या निकला है अन्दर से,
किसने सिन्धु ख़गाला देखो।
किसने गड़ा दिया देखो मत,
किसने ख़ार निकाला देखो।
जिससे ज़ख़्म सभी छुप जाँए,
ऐसा एक दुशाला देखो।