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ख़ुद से पूछूँ मैं कैसे / विनय मिश्र
Kavita Kosh से
ख़ुद से पूछूँ मैं कैसे ?
ख़ुद को देखूँ मैं कैसे ?
जो मेरी साँसों में है,
उसको भूलूँ मैं कैसे ?
हरदम एक सफ़र है वो,
मंज़िल चाहूँ मैं कैसे ?
यारो ! इतना बिखरा हूँ
ख़ुद को बाँधू मैं कैसे ?
दिल में अब डर बसता है,
कुछ भी सोचूँ मैं कैसे ?
मिलती अच्छी क़ीमत भी,
पर बिक जाऊँ मैं कैसे ?