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ख़ुद से भी उलझा तो होगा / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
ख़ुद से भी उलझा तो होगा
वो तन्हा होता तो होगा
मुझ से लड़ कर जाने वाला
अब ख़ुद से लड़ता तो होगा
तन्हा पा कर के यादों ने
उस को भी घेरा तो होगा
भूला बिसरा कोई लम्हा
अब भी याद आता तो होगा
आईने के सामने उसका
चेहरा धुन्धलाया तो होगा
धूप में जलते बामो-दर को
हसरत से तकता तो होगा
पहली बारिश के बादल ने
ख़त उस को लिक्खा तो होगा
बादल की तहरीरें पढ़ कर
दिल उस का धड़का तो होगा
ख़ुद अपने से छिप कर उस ने
मुझ को भी सोचा तो होगा
महफ़िल-महफ़िल बैठने वाला
घर जा कर रोता तो होगा
छोटे-छोटे से वक़्फों में
अपना मुँह धोता तो होगा
भेजा नहीं ये सच है लेकिन
उस ने ख़त लिक्खा तो होगा