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ख़ुद हूँ तमाशा ख़ुद ही तमाशाइयों में हूँ / शीन काफ़ निज़ाम
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ख़ुद हूँ तमाशा ख़ुद ही तमाशाइयों में हूँ
जब से सुना है मैं तिरे शैदाइयों में हूँ
गीराइयों में हूँ कभी गहराइयों में हूँ
रोज़े-अज़ल की आँखों की अँगनाइयों में हूँ
इक-इक नफ़स के साथ जला जिस के वास्ते
उस का ख्याल है कि मैं हरजाइयों में हूँ
ऐवाने-ख़्वाब छोड़ के निकला हूँ जब से मैं
साँसों की गूँजती हुई शहनाइयों में हूँ
अंधे कुएँ से अंधे कुएँ में गिरा दिया
सोचा नहीं कि मैं भी तेरे भाइयों में हूँ
फूटे है अंग-अंग से तेरे मिरा ही रंग
मैं ही तो तेरी टूटती अंगड़ाइयों में हूँ
कहता है वो कि तुझ से अलग मैं कहाँ 'निज़ाम'
तन्हाइयों में था तिरी रुसवाइयों में हूँ