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ख़ुशबुओं को मेरे घर में छोड़ जाना आपका / प्राण शर्मा

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ख़ुशबुओं को मेरे घर में छोड़ जाना आपका।
कितना अच्छा लगता है हर रोज़ आना आपका।

जब से जाना- ,काम है मुझ को बनाना आपका।
चल न पाया कोई भी तब से बहाना आपका।

आते भी हैं आप तो बस मुँह दिखाने के लिए।
कब तलक यूँ ही चलेगा दिल दुखाना आपका।

क्यों न भाये हर किसी को मुस्कराहट आपकी।
एक बच्चे की तरह है मुस्कराना आपका।

मान लेता हूँ चलो मैं बात हर इक आपकी।
कुछ अजब सा लगता है सौगन्ध खाना आपका।

क्यों न लाता मँहगे-मँहगे तोहफ़े मैं परदेस से।
वरना पड़ता देखना फिर मुँह फुलाना आपका।

बरसों ही हमने बिताए हैं दो यारों की तरह
प्राण मुमकिन ही नहीं पल में भुलाना आपका।