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ख़ुशबू बिछायी है राहों में/ विनय प्रजापति 'नज़र'
Kavita Kosh से
लेखन वर्ष: 2003
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ, तुम चले आओ
दिल बेक़रार है बहुत
तुम चले आओ, तुम चले आओ
मौसम बड़ा गुलाबी है
गुलाबी गुल हैं शाख़ों पर
अब और न तरसाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
दिल धड़क रहा है
धड़क रही है नब्ज़-नब्ज़
धड़कनें और न बढ़ाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
बरखा बहार आयी है
बरस रही है धरा पर
अब और न तड़पाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
आँचल उड़ाकर अपना
चेहरा दिखा दो
न चुराओ नज़र, न चुराओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
दिल बेक़रार है बहुत
तुम चले आओ…