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ख़ुशियों की उम्र / नील कमल
Kavita Kosh से
ख़ुशक़िस्मत हैं वे
थाना-कचहरी-अस्पताल
चक्कर लगाते
जिनके पैरों के तलवे नहीं चटक गए
ख़ुशक़िस्मत हैं वे
जिनके घर, नहीं
कैंसर का कोई मरीज़
तिल-तिल कर मरता
आँखों के सामने
ख़ुशक़िस्मत हैं वे
कि रातों-रात बंद हो गए
कारख़ाने के मज़दूर नहीं थे वे
वे ख़ुशक़िस्मत हैं
कि चैन से सो सकते हैं कमरे में
धूप और सर्दी से बेअसर
जबकि दुनिया में
जुलूस लगातार बड़े हो रहे हैं
मुट्ठियाँ लगातार उठ रही हैं हवा में
वे सचमुच ख़ुशक़िस्मत हैं
कि दुनिया के तमाम बदक़िस्मत
नहीं जानते उनका गुप्त ठिकाना
जहाँ नीली रोशनी में
सुनहरे हाथ गढ़े जाते हैं
लेकिन उनकी ख़ुशक़िस्मती पर
सिर्फ़ अफ़सोस किया जा सकता है
जुलूसों में हाथ तन रहे हैं ऊपर
और ख़ुशियों की उम्र ...?