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ख़ुशी मिलत तौ उमर बढ़त है / महेश कटारे सुगम
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ख़ुशी मिलत तौ उमर बढ़त है
दुखी आदमी वेग मरत है
जोंन आदमी मन कौ कारौ
खूबई बौई सजत सँवरत है
जी की अच्छी नज़र होत है
वौ अच्छौ-अच्छौ देखत है
भादों में जो आँखें फूटें
फिर तौ हरौ-हरौ सूझत है
घाव देत जब अपनौ कौनऊं
हलकौ घाव भौत कसकत है
सुगम सुभाव होत है जैसौ
वौ सबखौं ऊसौ समझत है