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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के / ज़हीर रहमती

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
बहुत रोएँगे तुम को याद कर के

ख़याल ओ ख़्वाब भी हैं सर झुकाए
गुलामी बख़्श दी आज़ाद कर के

जो कहने के लिए ही आबरू थी
वो इज़्ज़त भी गई फ़रियाद कर के

परिंदे सर पे घर रक्खे हुए हैं
मुझे छोड़ेंगे ये सय्याद कर के

यहाँ वैसे भी क्या आबाद रहता
ये धड़का तो गया बर्बाद कर के

कहाँ हम-दर्दियों की दाद मिलती
बहुत अच्छे रहे बे-दाद कर के

उसे भी क्या पता था हाल अपना
तड़पता है सितम ईजाद कर के