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ख़ुशी से दान देने की प्रेरणा / नज़ीर अकबराबादी

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जरदार है तो हरग़िज, मत मार अपने मन को।
तनजे़ब तनसुखों से, तरसा न अपने तन को।
जो नर चलन चले हैं, चल तू भी उस चलन को।
मुर्शिद का है यह नुक्ता, रख याद इस सुखन को।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥1॥

जा बैठ मैकदों में सब दर्दों ग़म से हटकर।
झमका गुलाबी मैं की प्याली उलट पलट कर।
महबूब दिलबरों से खुश हो लिपट-लिपट कर।
पी दूध और बताशे, मेवा मिठाई चट कर।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥2॥

कमख़ाब क्या दुशाला क्या रेशमी दुसूती।
कर शाल का लंगोटा, मत रख क़बा अछूती।
बोले जो शूम भड़ुवा, मार उसके सर पै जूती।
दो दिन तो दोस्तों में, बुलवा ले अपनी तूती।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥3॥

यह नैमतें हैं जितनी जो कुछ मिले सो खा जा।
ताश और बादले में इक बार जगमगा जा।
पापी बख़ील मत बन दाता सख़ी कहा जा।
इकदम तो अपना डंका मन मानता बजा जा।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥4॥

यां का यही मज़ा है, खाना व या खिलाना।
भूखे को डाल रोटी, नंगे को कुछ उढ़ाना।
सब इस घड़ी उड़ा ले, जो तुझको हो उड़ाना।
गाफ़िल फिर इस गली में, तुझको नहीं है आना।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥5॥

जो गुल बदन है रूठे, जर दे उन्हें मना ले।
बोसा उन्हों का लेकर, सीने से फिर लगा ले।
हंस ले, हंसा ले, हर दम देले, दिलाने खाले।
जो बन सके सो अपने, जी के मजे़ उड़ा ले।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥6॥

जो पास है जख़ीरा, मत रख वह कोने अन्दर।
मस्जिद कुएं बनादे, तालब, बाग मन्दर।
दरिया कहीं बहादे, बन जा कहीं समन्दर।
सब कुछ उड़ा लुटा कर, हो रह सदा क़लन्दर।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥7॥

बाग़ो की देख सैरें, भर जाम के छलक्के।
और छान मेले ठेले, कर धूम और धड़क्के।
आवे जो शूम, भडु़वा, काढ़ उसको देके धक्के।
तू शौक़ से उड़ा ले, ऐशो मजे झमक्के।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥8॥

सन्दूक में जो ज़र है, उसको भी ले गवां दे।
मै के बहा के नाले, तब़लों को खड़खड़ा दे।
कोठे मकां हवेली, सब खोद कर खिला दे।
कड़ियाँ तलक जला दे, ईंटें तलक उड़ादे।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥9॥

जो जो बख़ील कुट्टन ज़र छोड़कर मरेगा।
या खायेगा जमाई, या ख़ालसा लगेगा।
तेरा वही है जो कुछ, राहे ख़ुदा में देगा।
खाता, खिलाता, हंसता, तू भी सदा रहेगा।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥10॥

गर आ पड़ेगा तुझ पर कुछ हादसा ख़लल का।
मालिक फिर और कोई ठहरेगा तेरे दल का।
आगे से दे दिला के, हो रह तू उससे हलका।
कर सोच अपने दिल में, कुछ आज का न कलका।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥11॥

ज़र जोड़-जोड़ अपने तू पास गर रखेगा।
या छीन लेगा हाकिम, या चोर ले मरेगा।
तेरा वही है जो कुछ, अब ऐश कर चुकेगा।
जब वक़्त आ पुकारा, तब कुछ न बन सकेगा।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥12॥

जिसने यह ज़र दिया है फिर वोही धन भी देगा।
मालो, मकां, हवेली, बाग़ो चमन भी देगा।
जीता रहेगा जब तक खाने को अन भी देगा।
मर जायेगा तो वोही तुझको क़फ़न भी देगा।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥13॥

जितने गड़े, दबे हैं सब खाले और खिलाले।
रख धुन उसी की दिल में अब खाले और खिलाले।
अपना समझ उसी को जब खाले और खिलाले।
अब तो ”नज़ीर“ तू भी सब खाले और खिलाले।
दिल की खु़शी की ख़ातिर, चख डाल माल धन को।
गर मर्द है तो आशिक़, कौड़ी न रख क़फ़न को॥14॥

शब्दार्थ
<references/>