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ख़ुशी / गोरख प्रसाद मस्ताना
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खुशी को आँख भी होती है क्या, बता देना
खुशी चुपके से भी रोती है क्या, बता देना
मुझे सावन की घटाओं ने बुलाया ही नहीं
कभी आँगन में तितलियों ने भी गाया ही नहीं
खुशी जाकर कहीं है रोती है क्या, बता देना
मिला उत्कर्ष तो फिर हर्ष पे यौवन छाया
हुआ पुलकित नयन तो मौन सही भर आया
खुशी आँसुओं का मोती है क्या, बता देना
रेत बंजर जो बारिशों मे चमन हो जाते
अपनी मिट्टी को छोड नीलगमन हो जाते
खुशी अहँ में डुबोती है क्या, बता देना
हरेक साँस बिरह मिलन का स्थल है बनी
हँसी आँख में अवसाद की काजल है घनी
खुशी दुख दर्द भी ढ़ोती है क्या, बता देना
महल के वैभवों ने तृप्त नही होनें दिया
थी बड़ी वेदना गौतम को नही सोने दिया
खुशी वैराग्य भी बोती है क्या, बता देना