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ख़ुश कभी हो और कभी ग़मगीन हो / प्राण शर्मा
Kavita Kosh से
ख़ुश कभी हो और कभी ग़मगीन हो।
खट्टी-मीठी यादों में क्या लीन हो।
मिसरी-सी बातें तुम्हारी हैं जनाब
दिखने में लेकिन बड़े नमकीन हो।
ख़्वाब मे तुम आए मेरे चुपके से
जैसे धीमी फ़िल्म का इक सीन हो।
जादू इसका मन में क्यों उतरे नहीं
घाटियों मे गूँजती जब बीन हो।
ज़िन्दगी तू दुख में मुझ को यूँ लगी
जिस तरह पंछी परों से हीन हो।
क्यों न सोचे हर कोई अपना भला
क्यों न सोचे उसका घर रंगीन हो।
क्यों किसी पर बेवज़ह उँगली उठे
क्यों किसी की बेवज़ह तौहीन हो।
हाथ जोड़े रहता है वो हर घड़ी
'प्राण' कोई इतना भी क्यों दीन हो।