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ख़ुश रहता हूँ ग़म में भी / रामश्याम 'हसीन'
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ख़ुश रहता हूँ ग़म में भी
ज़्यादा में भी, कम में भी
हम किसके अवगुण देखें
अवगुण हैं जब हम में भी
ऐ दिल! क्या तू पागल है
हँसता है मातम में भी
क्या मुझ जैसा दीवाना
होगा दो आलम में भी
वो भी गुस्सा होते हैं
शोले हैं शबनम में भी