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ख़ुश हूँ के ज़िंदगी ने / अब्दुल हमीद 'अदम'
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ख़ुश हूँ के ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
मुझ को सुपुर्द-ए-गर्दिश-ए-अय्याम कर दिया
साक़ी सियाह-ख़ाना-ए-हस्ती में देखना
रौशन चराग़ किस ने सर-ए-शाम कर दिया
पहले मेरे ख़ुलूस को देते रहे फ़रेब
आख़िर मेरे ख़ुलूस को बद-नाम कर दिया
कितनी दुआएँ दूँ तेरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ को
कितना वसी सिलसिला-ए-दाम कर दिया
वो चश्म-ए-मस्त कितनी ख़बर-दार थी 'अदम'
ख़ुद होश में रही हमें बद-नाम कर दिया.