ख़ुश हूँ तेरी अदाओं का सदक़ा निकाल कर / निर्मल 'नदीम'
ख़ुश हूँ तेरी अदाओं का सदक़ा निकाल कर,
मैं अपने दिल से हसरत ए दुनिया निकाल कर।
करता है ख़ाक ए पा से मेरी रोज़ ओ शब वज़ू,
इक कोहकन जो आया है दरिया निकाल कर।
ज़ख़्मों से मैंने ख़ाक की परतें जो झाड़ दीं,
सहरा खड़ा है सामने कासा निकाल कर।
टूटा जो वुसअतों पे मेरी अर्श का ग़ुरूर,
सजदे को चल पड़ा है मुसल्ला निकाल कर।
क्या कुछ किया न ज़िन्दगी की उलझनों के बीच,
पीनी पड़ी है रंज से सहबा निकाल कर।
हर सांस पर है रक़्स उसी के ज़हूर का,
लाते कहाँ से हो ये सलीक़ा निकाल कर।
इक तीर ए नीमकश हो दिल ए नातवाँ में जज़्ब,
हाथों में तेरे रख दूँ तमन्ना निकाल कर।
आंखों के जंगलों में भटकती है कायनात,
आना तो कोई दूसरा रस्ता निकाल कर।
एहसां किया है दर्द ने तुझपे नदीम ए माह,
चेहरे पे तेरे इश्क़ का चेहरा निकाल कर।