ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा / ग़ालिब
ख़ुश हो ऐ बख़्त<ref>बख़्त नाम का राजकुमार</ref>कि है आज तेरे सर सेहरा
बाँध शहज़ादा जवाँ बख़्त के सर पर सेहरा
क्या ही इस चाँद-से मुखड़े पे भला लगता है
है तेरे हुस्ने-दिल अफ़रोज़<ref> आलौकिक सौंदर्य</ref> का ज़ेवर<ref>अलंकरण</ref> सेहरा
सर पे चढ़ना तुझे फबता है पर ऐ तर्फ़े-कुलाह<ref>टोपी का किनारा</ref>
मुझको डर है कि न छीने तेरा लंबर<ref>श्रेणी,क्रम</ref> सेहरा
नाव भर कर ही पिरोए गए होंगे मोती
वर्ना<ref>अन्यथा</ref> क्यों लाए हैं कश्ती में लगाकर सेहरा
सात दरिया के फ़राहम<ref>जुटाए गए, उपलब्ध करवाए गए</ref>किए होंगे मोती
तब बना होगा इस अंदाज़ का ग़ज़ भर सेहरा
रुख़<ref>चेहरे</ref> पे दूल्हा के जो गर्मी से पसीना टपका
है रगे-अब्रे-गुहरबार<ref>मोती बरसाते बादलों की रग</ref>सरासर<ref>नि:संदेह</ref> सेहरा
ये भी इक बेअदबी थी कि क़बा<ref>लिबास,वस्त्र</ref> से बढ़ जाए
रह गया आन के दामन के बराबर सेहरा
जी में इतराएँ न मोती कि हमीं हैं इक चीज़
चाहिए फूलों का भी एक मुक़र्रर<ref>निर्धारित</ref>सेहरा
जब कि अपने में समावें न ख़ुशी के मारे
गूँथें फूलों का भला फिर कोई क्योंकर सेहरा
रुख़े-रौशन<ref>प्रकाशमान चेहरे</ref> की दमक गौहरे-ग़ल्ताँ<ref>लुढ़कते हुए मोती</ref> की चमक
क्यूँ न दिखलाए फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर<ref>चाँद व सितारों की शोभा</ref> सेहरा
तार रेशम का नहीं है ये रगे-अब्रे-बहार<ref>मोती बरसाती बहार की रग</ref>
लाएगा ताबे-गिराँबारि-ए गौहर<ref>रत्नों की बहुमूल्यता</ref> सेहरा
हम सुख़नफ़हम<ref>काव्य-रसिक</ref> हैं ‘ग़ालिब’ के तरफ़दार<ref>पक्षधर</ref> नहीं
देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा