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ख़ूँनाबफ़िशाँ / जोशना बनर्जी आडवानी

Kavita Kosh से
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नही है आसां
दो देशो के बीच की नदी
पर कविता लिखना

नही है आसां
घुप्प अँधेरी रात के संगीत
पर झींगुरवाद लिखना

नही है आसां
सभ्यताओं की गृहस्थियों
पर नदी लिखना

नही है आसां
ऊँचे कँगूरों की मिल्कियत
पर चिड़ियाँ लिखना

नही है आसां
महान संकट से गुज़र रहे देश
पर हवा लिखना

नही है आसां
किसानो के माथे पर नपी
तुली वर्षा लिखना

नही है आसां
लोगो के काँपते हाड़ पर
मेमने की देह लिखना

क्या करिश्मा है कि
कविता, झींगुर, नदी, चिड़ियाँ,
हवा, वर्षा और मेमने ईश्वर
बने रहने की अदायगी
कर रहे है