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ख़ूँ से लबरेज़ जाम है तेरा / सूरज राय 'सूरज'

ख़ूं से लबरेज़ जाम है तेरा।
न ही अल्लाह न राम है तेरा॥

तेरे सच का है ज़माना दुश्मन
आईना तो ग़ुलाम है तेरा॥

वक़्त ने दफ़्न कर दिये रावण
कौन है तू क्या नाम है तेरा॥

ले नज़र से गिरा दिया तुझको
हाँ मुनासिब ये दाम है तेरा॥

आँख के साथ झुक गया सर भी
दर्द है या सलाम है तेरा॥

कान ही हो गया तमाम बदन
ज़िक्र यूँ सुबहो-शाम है तेरा॥

आँख में नींद की जगह आँसू
दिल यक़ीनन ये काम है तेरा॥

रोशनी इक सवाल है तुझसे
क्या महल ही मुक़ाम है तेरा॥

ये ग़रीबों की है बस्ती, ऐ वफ़ा
आ इधर एहतिराम है तेरा॥

क़ब्र तक सैकड़ों कांधों पर सफ़र
मौत! क्या इंतज़ाम है तेरा॥

एक शेर जो हासिले-ग़ज़ल हो गया है:

तेरा ईमां अगर भारत है तो
नाम अब्दुल क़लाम है तेरा॥

नाम ख़ुद तूने चुन लिया "सूरज"
आग ही तो ईनाम है तेरा॥