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ख़ून पीने में जिसे विश्वास है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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ख़ून पीने में जिसे विश्वास है
आदमी वो ही शहर में ख़ास है

वाह अंधे रहबरों की रहबरी
मुल्क गहरी खाइयों के पास है

आदमी को आदमी खाता रहा
आज तक का मुख़्तसर इतिहास है
 
भुखमरी जब तक यहाँ मौजूद है
हर तरक्की खोखली बकवास है

बागबानों! क्या हुआ गुलज़ार को
हर तरफ़ कुचली हुई-सी घास है