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ख़ूबसूरत मोड़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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ख़ूबसूरत मोड़ पर
इनसान अकेला होता है
पिछले सारे रास्ते
उनके सारे क़िस्से
ख़त्म हो चुके होते हैं
सामने का रास्ता
कुछ कहता नहीं

ख़ूबसूरत मोड़ पर
संगी-साथी छूट जाते हैं
वे, वे नहीं रह जाते
मैं, मैं नहीं रह जाता

बेहद ख़तरनाक़ है
ख़ूबसूरत मोड़।