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ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुमताज़ है सरापा / 'फ़ायज़' देहलवी
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ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुमताज़ है सरापा
अंदाज़-ए-दिलबरी में एजाज़ है सरापा
पल पल मटक के देखे डग डग चले लटक के
वो शोख़ छल छबीला तन्नाज़ है सरापा
तिरछी निगाह करना कतरा के बात सुनना
मजलिस में आशिकों की अंदाज़ है सरापा
नैनों में उस की जादू ज़ुल्फाँ में उस की फँदा
दिल के शिकार में वो शहबाज़ है सरापा
ग़म्ज़ा निगह तग़ाफुल अंखियाँ सियाह ओ चंचल
या रब नज़र न लागे अंदाज़ है सरापा
उस के ख़िराम ऊपर ताऊस मस्त हैगा
वो मीर दिल-रूबाबी तन्नाज़ है सरापा
किश्त-ए-उम्मीद करता सर-सब्ज़ सब्ज़ा-ए-ख़त
अंजाम-ए-हुस्न उस का आगाज़ है सरापा
वक़्त-ए-नज़ारा ‘फाएज़’ दिल-दार का यही है
बिस्तर नहीं बदन पर तन-बाज़ है सरापा