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ख़ूब दिलकश जहान होता है / शम्भुनाथ तिवारी

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ख़ूब दिलकश जहान होता है
वक़्त जब मेह्रबान होता है

सुबह से शाम तक गुज़रजाना
रोज़ इक इम्तिहान होता है

आह दिल में मिठास होंठों पर
घर अगर मे’हमान होता है

गूँजती हो जहा पे किलकारी
वह मकाँ ही मकान होता है

आँधियाँ ही मिटा गईं पल में
रेत का क्या निशान होता है

सिर्फ़ रोटी में एक मुफ़लिस का
बस मुक़म्मल जहान होता है

ज़िंदगी के उदास लम्हों में
आदमी बेजुबान होता है

हौसला देखिए परिंदे में
हर घड़ी ख़तरे-जान होता है

देखना उस गरीब-बेवा को
अगर बेटा जवान होता है