ख़ूब बातें कर चुके हिंदुत्व और इस्लाम की / धर्वेन्द्र सिंह बेदार
ख़ूब बातें कर चुके हिंदुत्व और इस्लाम की
आइए अब हम करें दो चार बातें काम की
दिल से दिल को जोड़ ले नफ़रत से नाता तोड़ ले
आज दुनिया को ज़रूरत है इसी पैग़ाम की
कौन करता है मदद अब याँँ किसी मज़लूम की
अब ज़माने में बची इंसानियत बस नाम की
चल पड़े इक बार जो राह-ए-सदाक़त पर यहाँँ
वो किया करते नहीं परवा कभी अंजाम की
क़त्ल मुंसिफ़ ने किया मुजरिम मुझे ठहरा दिया
ये हक़ीक़त है मेरे सर पर लगे इल्ज़ाम की
तू पिला दो घूंँट नज़रों से तेरी ऐ साक़िया
फिर हमें होगी नहीं कोई ज़रूरत जाम की
लो परिंदे उड़ चले हैं आसमानों की तरफ़
अब छुएँँगे हर बुलंदी वह फ़लक के बाम की
ज़ोर लगता है ग़ज़ल लिखने बनाने में बहुत
जाब ये होती नहीं है दोस्तो आराम की
आप सबकी दाद है इन'आम मेरा दोस्तो
और चाहत है नहीं मेरी किसी इन'आम की