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ख़ैर-मक़्दम है ये किसका शहर में / रवि सिन्हा
Kavita Kosh से
ख़ैर-मक़्दम<ref>स्वागत (welcome)</ref> है ये किसका शहर में
नाचते हैं प्रेत क्यूँ इस पहर में
मशरिक़ी<ref>पूरब (east)</ref> वूहान से गॉथम सिटी
मौत रक़्सिन्दा<ref>नाचती हुई (dancing)</ref> है गेसू लहर में
दूर से ही अलविदा कह बेक़ुसूर
दफ़्न होते हैं सज़ा-ए-दहर<ref>समय की सज़ा (punishment of the times)</ref> में
चीखती है सायरन क्यूँ रात भर
साफ़ तो सड़कें हैं सारी शहर में
क़ैद होने के लिए भी घर तो हो
भूख पैदल है सड़क पर क़हर में
कीमिया-गर कौन है इस दौर का
कौन घोले ज़िन्दगी को ज़हर में
ग़ज़ल की तन्क़ीद<ref>आलोचना (critique)</ref> के पैमाँ हों क्या
बात आती ही नहीं है बहर<ref>छन्द (metre)</ref> में
शब्दार्थ
<references/>