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ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं / डी. एम. मिश्र

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ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं
भरे ताल, वीरान महल से अच्छे ज़्यादा हैं।

गॅावों में सादगी और ताजी हरियाली है
शहर में बस बासी हुस्नों के नखरे ज़्यादा हैं।

तेरी फुलवारी के फूल तो बहुत निराले हैं
छोटा -सा जो जीवन अपना जीते ज़्यादा हैं।

बड़ा आचरण, बड़ा ज्ञान सब पीछे रह जाता
बड़ा वही है जिसके पास में पैसे ज़्यादा हैं।

मेरी ग़ज़लों में मेरी दुनिया की बातें हैं
जिसमें नये - नये रंगों के सपने ज़्यादा हैं।