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ख़ौफ़ दो रंग का मेरे गाँवों में है / बल्ली सिंह चीमा

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ख़ौफ़ दो रंग का मेरे गाँवों में है ।
गंध बारूद की अब हवाओं में है ।

ख़ूँ बहाने की लत पड़ गई है इन्हें,
एक हिंसक जुनूँ इन ख़ुदाओं में है ।

खुल रही पगड़ियाँ, नुच रही दाढ़ियाँ,
अटपटा-सा ये मंज़र निगाहों में है ।

वाह री ! जम्हूरियत जाऊँ सदके तेरे,
हिटलरी रंग तेरी अदाओं में है ।

ये हक़ीक़त है 'बल्ली' अजूबा नहीं,
ज़िन्दगी दिल में है, मौत बाहों में है।