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ख़्वाब-ए-दीदार न देखा हम ने / 'रविश' सिद्दीक़ी

ख़्वाब-ए-दीदार न देखा हम ने
ग़ाएबाना उन्हें चाहा हम ने

कम न था इश्क़ अज़ल से रूस्वा
कर दिया और भी रूसवा हम ने

ज़िंदगी महव-ए-ख़ुद-आराई थी
आँख उठा कर भी न देखा हम ने

राह से दूर नज़र आए जो ख़ार
उन को पलकों से उठाया हम ने

ले लिया कोह-ए-हवादिस सर पर
वक़्त के दिल को न तोड़ा हम ने

कर दिया फ़ाश तिरा ग़म ले कर
राज़-ए-एजाज़-ए-मसीहा हम ने

कोह संगीन-ए-हक़ाएक़ था जहाँ
हुस्न का ख़्वाब तराशा हम ने