ख़्वाब अब कोई मचलता क्यों नहीं
मुश्किलों का हल निकलता क्यों नहीं
कोशिशों की रोशनी तो है मगर
ये अँधेरा फिर भी ढलता क्यों नहीं
मन की गलियों में बिखेरे खुशबुएँ
फूल ऐसा कोई खिलता क्यों नहीं
ठोंकता है जो अमीरी को सलाम
मुफ़लिसी पर वो पिघलता क्यों नहीं
बात बन जाए तो वाह-वाह हर तरफ
सर कोई लेता विफलता क्यों नहीं
उम्र ढलती जा रही है हर घड़ी
ख्वाहिशों का जोर ढलता क्यों नहीं