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ख़्वाब आँखों में ज़रा हटके सजाने होंगे / राम नाथ बेख़बर

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ख़्वाब आँखों में ज़रा हटके सजाने होंगे
रेत पर फूल हर इक सम्त खिलाने होंगे

पास मंज़िल तो कभी चल के नहीं आती है
यार कुछ और क़दम और बढ़ाने होंगे

तीरगी ख़ुद ही कहीं दूर चली जायेगी
हाँ, मगर द्वार पे कुछ दीप जलाने होंगे

बस यही सोच के हम दूर सियासत से रहे
दुश्मनों से भी कभी हाथ मिलाने होंगे

'बेख़बर' चैन सुकूं से है अगर जीना तो
अपनी ख़्वाहिश पे ज़रा ब्रेक लगाने होंगे