भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाब और मुहब्बत / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
ख़्वाब में कभी धड़ होता है
सिर नहीं होता
दिल होता है
धड़कन नहीं होती
इसी तरह मुहब्बत में
क़िरदार होते हैं
वक़्त की सरहदें नहीं होती
परवाज़ होती है
पंख नहीं होते
लेकिन ख़्वाब में कभी-कभी
वक़्त वही होता है
बस क़िरदार नहीं होते
कितने अज़ीब होते है
ये ख़्वाब, ये मुहब्बत भी
कहीं मुमकिन भी नामुमकिन
तो कहीं नामुमकिन
भी मुमकिन हो जाता है।