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ख़्वाब का दर बंद है / शहरयार
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ख़्वाब का दर बंद है
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रचनाकार | शहरयार |
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प्रकाशक | साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली-110 001 |
वर्ष | 1996 |
भाषा | हिन्दी / उर्दू |
विषय | शायरी |
विधा | ग़ज़लें और नज़्में |
पृष्ठ | 131 |
ISBN | 81-7201-946-7 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
ग़ज़लें
- ख़्वाब का दर बंद है (कविता) / शहरयार
- आँख की ये हसरत थी कि बस पूरी हुई / शहरयार
- सुर्ख़ी ज़रा सी ख़्वाब के ख़जर पे देखकर / शहरयार
- ज़िन्दगी जैसी तब्वक्को थी, नहीं, कुछ कम है / शहरयार
- तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा देख के, ये हैराँ है/ शहरयार
- माहौल मेरे शहर का, हाँ पुरसकूँ न था / शहरयार
- ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें, दिल शाद करें फिर से / शहरयार
- नींद की ओस से, पलकों को भिगोए कैसे / शहरयार
- तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था / शहरयार
- जुदा हुए वे लोग कि जिनको साथ में आना था / शहरयार
- शाम की दहलीज़ तक आई हवा / शहरयार
- लम्स-ओ-लज़्ज़त के असर में आ गए / शहरयार
- देख दरिया को कि तुग़यानी में है / शहरयार
- हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है / शहरयार
- ख़मोश रहना है ऐ अहले-दर्द यूँ कब तक / शहरयार
- आईना बन के इसे ख़ुद में उतरता देखो / शहरयार
- कहीं लकीरों, कहीं दायरों में बँटने लगी / शहरयार
- वहशत-ए-दिल थी कहाँ कम कि बढ़ाने आए / शहरयार
- हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे / शहरयार
- गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम / शहरयार
- आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है / शहरयार
- ये क्या हुआ कि तबीयत सँभलती जाती है / शहरयार
- बाम-ओ-दर की क़ैद से मुझको रिहा किसने किया / शहरयार
- नहीं है मुझसे तअ़ल्लुक़ कोई, तो ऐसा क्यों / शहरयार
- उम्र की लम्बी मुसाफ़रत हर क़दम खलने लगी / शहरयार
- साए जब वक़्त-ए-शाम ढलने लगे / शहरयार
- मैं ज़िन्दा हूँ इसका मुझको कुछ तो यकीं आए / शहरयार
- कैसा माज़ी था, क्या है हाल अपना / शहरयार
- उसको किसी के वास्ते बेताब देखते / शहरयार
- ये क्या है, मुहब्बत में तो ऐसा नहीं होता / शहरयार
- शाम तक जब कोई घर आता न था / शहरयार
- सब कहेंगे कि न देखा था तमाशा ऐसा / शहरयार
- बंद दरवाज़ों को जब जब दस्तकें सहलाएँगी / शहरयार
- कारोबार-ए-शौक में बस फ़ायदा इतना हुआ / शहरयार
- देखते ही देखते हर शै यहाँ फ़ानी हुई / शहरयार
- बढ़ा दे मिरी वहशतें, चाक मेरा गरीबाँ कर दे / शहरयार
- मंज़र गुज़रती शब का दामन में भर रहा हूँ / शहरयार
- मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना / शहरयार
- इश्क कहिए कि हवस इसकी बदौलत कुछ है / शहरयार
- कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें / शहरयार
- सफ़र ये ख़त्म हो जाए, नहीं ऐसा नहीं होगा / शहरयार
- कितना बाक़ी है सफ़र, अहल-ए-जुनूँ का देखो / शहरयार
- ये काफ़िले यादों के कहीं खो गए होते / शहरयार
- नहीं है जो सहरा दर-ओ-बाम दे / शहरयार
- कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का / शहरयार
- नज़र जो कोई भी तुझ-सा हसीं नहीं आता / शहरयार
- तू कहाँ है तुझसे इक निस्बत थी मेरी ज़ात को / शहरयार
- ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा / शहरयार
- हमको जिस दिन न ज़माने से शिकायत होगी / शहरयार
- खूँ में लत-पत हो गए साए भी अश्जार के / शहरयार
- गुबारे-शाम से आगे की मंज़िलों तक है / शहरयार
- तलाश जिसकी रही हमको उम्र भर, क्या था / शहरयार
- लहू की बूँद, ख़िज़ाँ का ख़याल, सब मैं हूँ / शहरयार
- टूटी-फूटी किश्तियाँ दरिया में गिर्दाब हैं / शहरयार
- रग़ों में बर्फ़ जमी बेहिसी-सी तारी हुई / शहरयार
- रातें, लोगो सुनो! बे-कराँ हो गई / शहरयार
- जीने के इल्ज़ाम सब हमने अपने सर लिए / शहरयार
- हवाए-कूए-जानाँ सिर्फ़ इतना काम कर जाना / शहरयार
- / शहरयार
- / शहरयार
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