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ख़्वाब में तो यहीं कहीं देखा / ओम प्रभाकर
Kavita Kosh से
ख़्वाब में यहीं कहीं देखा
वैसे, कब से तुम्हें नहीं देखा।
था न मुमकिन जहाँ कोई मंज़र
मैंने शायद तुम्हें वहीं देखा।
मैंने तुमको तुम्हीं में देखा है
और किसी में कभी नहीं देखा।
टुक ख़यालों में, टुक सराबों में
टुक उफ़क में कहीं नहीं देखा।
उन दिनों भी यहीं थे, दिल की जगह
लौटकर आज फिर यहीं देखा।
शब्दार्थ :
टुक=थोड़ा; सराब-मृगमरीचिका; उफ़क=क्षितिज