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ख़्वाब में मुझ को मिला था शायद / रंजना वर्मा

ख्वाब में मुझ को मिला था शायद
याद में मेरी जिया था शायद

सहम गयी थी हवा की टोली
एक तूफ़ान उठा था शायद

महक उठी थी तमन्ना मेरी
फूल उल्फ़त का खिला था शायद

हम थे मझधार से निकल आये
नाखुदा रब ही मेरा था शायद

भीड़ ने रोक लिया था रस्ता
कारवाँ कोई रुका था शायद

भीग उट्ठा था मेरा दामन भ
अश्क़ आंखों से गिरा था शायद

जो मुझे छोड़ कर गया तनहा
वो अकेला ही था रहा शायद

रात के बाद भी है अन्धेरा
साथ बादल का मिल गया शायद

फेर कर मुँह चला गया साथी
है वफ़ा का यही सिला शायद