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ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल / रफ़ी रज़ा
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ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल
तू कभी ख़द्द-ओ-ख़ाल में मुझे मिल
मेरे दिल की धमाल में मुझे देख
मेरे सुर मेरी ताल में मुझे मिल
मेरी मिट्टी को आँख दी है तो फिर
किसी मौज-ए-विसाल में मुझे मिल
मुझे क्यूँ अर्सा-ए-हयात दिया
अब इन्हें माह ओ साल में मुझे मिल
किसी सुब्ह-ए-फ़िराक़ में मुझे छोड़
किसी शाम मलाल में मुझे मिल
तू ख़ूद अपनी मिसाल है वो तो है
इसी अपनी मिसाल में मुझे मिल
तेरे शायान-ए-शाँ है वस्फ़ यही
किस वक़्त-ए-मुहाल में मुझे मिल
मेरे कल का पता नहीं मेरी जाँ
तू अभी मेरे हाल में मुझे मिल
मुझे मिल कर उरूज दे या न दे
मेरे वक़्त-ए-ज़वाल में मुझे मिल