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ख़्वाब - 1 / अंशु हर्ष
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कल रात
एक आहट सी हुई
दरवाज़े पर
देखा तो तुम थे
अपने चिर परिचित अंदाज़ में
मंद मुस्कुराहटें लिए
ना शब्द थे , ना बात हुई
ना ही पास बैठ मुलाकात हुई
तुम चाय पीना चाहते थे
और मैंने अपने एहसास का हर लम्हा
अदरक के साथ कूट कर
मिला दिया था उसमें
लेकिन ये क्या
तुम तो वहाँ नही थे
शायद एक अधूरा सा ख़्वाब था.....
अब यादें भी चाय के कप सी हो गयी है
तन्हा होते है तो ले कर बैठ जाते है