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ख़्वाहिशों की फेहरिस्त जब कभी बनाना तुम / पल्लवी मिश्रा

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ख़्वाहिशों की फेहरिस्त जब कभी बनाना तुम,
काग़ज़ में जगह कम है यह भूल न जाना तुम।

कई चाहतें उम्र भर रह जाएँगी अधूरी ही,
उनकी फिक्र में रहकर दिल को न दुखाना तुम।

हो पाये अगर मुमकिन, वादा न कोई करना,
कर ही लिया अगर तो मरकर भी निभाना तुम।

इस जिस्म पर हज़ारों चाहो तो वार कर लेना,
भूले से मगर दिल पर साधो न निशाना तुम।

जब रोने की हो तमन्ना, तन्हाइयाँ ढूँढ़ लेना,
अश्कों को जहाँ तक हो, जमाने से छुपाना तुम।

ये दौलत और ये शोहरत चलते हुए राही हैं
कब जाने कहाँ ये ठहरें, पूछो न ठिकाना तुम।

हैं मुश्किलों से मिलतीं जीने की चंद घड़ियाँ,
बेकार की बातों में इनको न गँवाना तुम।