भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़्वाहिश / अंशु हर्ष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा नन्हा सा मन
पलक का टूटा बाल
मुट्ठी पे रख
फूंक से उड़ा
स्कूल की छुट्टी मांगता था
और अगले दिन रविवार आ जाता था
काश ज़िन्दगी की हर हसरत
एक पलक के टूटे बाल से पूरी हो जाती