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खाँसते सम्वाद, बातें खो गई हैं / यश मालवीय
Kavita Kosh से
खाँसते सम्वाद, बातें खो गई हैं
आँसुओं से कुशल-मंगल
धो गई हैं
खाँसते सम्वाद,
बातें खो गई हैं
झुटपुटे में, दिलो जाँ को
थाम बैठी
खिड़कियों पर,ज़िन्दगी की
शाम बैठी
स्वयं ही विषबेल,
सुबहें बो गई हैं
लाभ-शुभ सब दिखें
धुँधले स्वस्तिकों से
दुख कि लम्बे बहुत
धारावाहिकों से
चाँद का कर क़त्ल,
रातें सो गई हैं
सूलियों से सच उतारे
और टाँगे
आइना भी रोज़
परिचय-पत्र माँगे
ख़ास पहचानें,
अपरिचित हो गई हैं ।