खाजा-दूध मांगे / सतीश मिश्रा
चानी के कटोरा निअन चान, खाजा-दूध माँगे।
अँचरा धर के ठुनके बेइमान, खाजा-दूध माँगे।
अगर सरद पूनो जानती तो घर से हम बहरइती न
अंगना में हम अइती न
दाव लगौले छलिया जानती तो सिंगार रचइती न
घूघा हम सरकइती न
चाननिआँ के हाँथे चुनरी छान, खाजा-दूध मांगे।
आगे कहलक से सुन भेली गल के हम तो रइतो
सुनऽ समझ में अइतो
सूई में तागा समा दऽ गोरी नैन-जोत बढ़ जइतो
ई रात न हरदम अइतो
धैले दुन्नों लिल्हुआ नादान, खाजा-दूध माँगे।
कहे कि अमरित आज चुएबो तूँ अप्पन मुँह फारऽ
दुन्नों हाथ पसारऽ
शालीग्राम बहरिए रहता भय-संकोच नेवारऽ
छत पर रात गुजारऽ
अहिल्या के कर के बदनाम, खाजा-दूध मांगे।
सबक सिखाऊँ, चिकरूँ, पकडूँ, गौतम भिर ले जाऊँ
कि कहना में आ जाऊँ?
मोह लेलक मन, हरलक अइसन ज्ञान कि हम घबराऊँ
का करूँ, समझ न पाऊँ
कर देऊँ कि हो जाऊँ जिआन, खाजा-दूध माँगे।
चानी के कटोरा निअन चान, खाजा-दूध माँगे।