भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाता बही / चेस्लाव मिलोश / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी मूर्खताओं के इतिहास से भरे होंगे कई खंड ग्रंथों के

कुछ होंगे समर्पित अंतरात्मा के विरुद्ध कार्य करने को
उस पतिंगे की उड़ान सा, जो जानते हुए भी
गया होगा स्वभावतः तथापि दिए की लौ की ओर।

अन्य होंगे समर्पित चिंता से मुक्ति के रास्तों को
वह छोटी-सी अफवाह जो, खतरे की चेतावनी होने के बावजूद, उपेक्षित रही।

मैं अलग से निपटूंगा संतुष्टि और गर्व से,
उस समय जब मैं था उनके अनुयायियों में
जो आये विजयी हो गर्वीली चाल से, खतरे से अंजान।

पर वह सब होता एक ही विषय, कामना,
यदि केवल मेरी अपनी होती-पर नहीं, बिलकुल नहीं; आह,
मैं चला, क्योंकि चाहता था मैं औरों जैसा होना,
मैं था भयभीत उससे जो था मेरे भीतर, क्रूर और अश्लील।

नहीं लिखा जाएगा मेरी मूर्खताओं का इतिहास।
इसलिए भी कि अब हो चुकी है देर और सत्य भी है श्रमसाध्य।