भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाना खायोनी / बैगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

काटो रे बाबा हरा को नागर, काटो बीजा जुआँड़ी।
फाँदी रे बाबा कारी बैलन को नागर जोतो कयली-कछार।
एक खूटे बोयो मनरूसी ढाने, एक खूटे मूँगा उरीदा।
एक पान हो गय मनरूसी धाने, दुई पाने मूँगा उरीदा।
बालेनी निकड़य मनरूसी धाने, फाड़य मूँगा उरीदा।
होवाना लागय मनरूसी धाने, होवाय मूँगा उरीदा।
नो यो दाई मनरूसी धाने, नो यो मूँगा उरीदा।
बोझानी बाँधी मनरूसी धाने, बाँधो मूँगा उरीदा।
मीडो रे बाबा मनरूसी धाने, मीडो मूँगा उरीदा।
उड़वायो बाबा मनरूसी धाने, उड़वायो मूंगा उरीदा।
रासीनी बाँधाय मनरूसी धाने, उड़वायो मूँगा उरीदा।
रासेनी डूमों मनरूसी धाने, डूमों मूँगा उरीदा।
कओटी माँ भरो मनरूसी धाने, भरो मूँगा उरीदा।
हेडो ओ दाई मनरूसी ढाएँ, हेडो मूँगा उरीदा।
घाँटो यो दाई मनरूसी धाने, निमाड़ो मूँगा उरीदा।
कूटो दाई मनरूसी धाने, दाड़ो मूँगा उरीदा।
मनरूसी धानाक भाटे रंधाबी, मूँगा उरीदा के दास।
तूमा फूलेयस भाटे रंधाबी, कुमढ़ा फूलस दाड़े रंधाबे।
झै नानबी संगही गरबादक, पानी तोर संगहीक हाठे धूमलाही।
नान बायो संगही दुदमरीक, पानी तोर संगही हाठे उजड़ाही।
कोनेना हाथे केंवरी उठाबी, कोने हाथे आँसुनी पोचकी।
जौनी ना कौर हाथे केंवरी उठाबी डेरी हाथे आँसूना पोछनी॥

शब्दार्थ – पाना-पता, मींडो=गहाई/उड़ाकर, रास=ढेर, निमाड़ो= बिनलो , तूमा=लौकी।
 
थाली में हर प्रकार का बैगा भोजन परोसा और माँ दुल्हन को बड़े प्यार से खाना खिला रही है। दुलहन माँ से कहती है- माँ पिताजी को कहो। हर्रा की लकड़ी को काटें। उसका हल बनाएँ। बीजा की लकड़ी का जुआ बनाएँ। काले बैलों को जोतकर खेत में हल चलाएँ। अपना खेत कयली-कछार में है। उसी खेत में परिवार के लिये फसल उगाये। माँ! तुम पिताजी से कहना-हल जोतने के बाद खेत में एक कोने में मनरूसी धान (चावल) बोएँ। एक-एक कोने में मूँग और उड़द बोएँ। दुल्हन के पिता ने वैसा ही किया। खेत में बोये मूँग, उड़द बोएँ। दुल्हन के पिता ने वैसा ही किया। खेत में बोये मूँग, उड़द और धान के पौधों में पहले अंकुर फूटे। फिर ताने से एक पत्ता, दूसरा पत्ता, इस तरह पौधों की बालियों में बीज भर गये। तब बेटी कहती है- माँ! जाओ, तुम खेत घूम आओ। धान मूँग, उड़द उग आये हैं। उनमें दाने बैठ गये हैं। अब जल्दी करो। फसल को काटकर ले आओ। बेटी के कहने पर माँ खेत में फसल देखने गई। उसने देखा फसल उग गई है। उसने फसल कटाई की। उसके पिता फसल का बोझ बाँधकर घर ले आए। सभी अनाज की उन्होने जल्दी से गहराई की। अनाज निकाल आया। सारा अनाज कोठियों में बाहर दिया गया। तब बेटी कहती है- माँ! अब तुम जल्दी से धान की कुटाई करो। मूँग, उड़द की दाल बनाओ। और जल्दी से खाना बनाओ। माँ ने जल्दी-जल्दी सारा काम किया और खाना बनाया। चावल-दाल बनाई। आँगन में कई तरह की सब्जियाँ लौकी-कुम्हड़ा भी फली है। उनकी सब्जी बनाओ। माँ ने दुल्हन को भोजन परोसा। भोजन करने के लिये एक सहेली ने दुल्हन के हाथ नर्मदा के पाने से धूलाये। तब दुल्हन कहती है- नहीं सखि! मेरे हाथ नर्मदा के पानी से नहीं धूलेंगे। मेरे हाथ तुम दूध से ही धुलवाओ। तब उसकी सहेली दुल्हन के हाथ दूध से ही धुलवाती है। फिर दुल्हन अपने हाथ से रूचि पूर्वक भोजन करती है।