भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाना है, खिलाना है / अज्ञात रचनाकार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाना है, खिलाना है,
भइया को सुलाना है।
एक घूंट दादा का, एक घूंट दादी का,
एक घूंट चाचा का, एक घूंट चाची का।
गुटर-गुटर गुट!
एक घूंट भइया का, एक घूंट बहना का,
एक घूंट तुम्हार, एक घूंट हमारा।
गुटर-गुटर गुट!
खाना है, खिलाना है,
भइया को सुलाना है।