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खामोशियांं / प्रगति गुप्ता

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पसरी हुई खामोशी
क्या कुछ नहीं कह गई...
तब कहीं चुपके से तुझे
छू कर आई हवा
मुझे यूं सहरा गई
कुछ बतला गई
खामोशियांं भी ज़रूरी हैं
बहुत कुछ महसूस करने को
कुछ थोड़ा-सा जीने को
जीने को महसूस करने को...