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खामोशी भी कुछ कहती है / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
थोड़ा तो चुप रहो सुनो यह
खामोशी भी कुछ कहती है॥
अर्थों के गुरु भार , शब्द
थक गये राह पर चलते चलते।
कट न सका मावस का घेरा
बुझे दीप सब जलते जलते।
शब्द मौन हैं सारे साथी
है बेहद निस्तब्ध दिशाएं।
कुछ चेतनता लिए बोलती
बेहोशी भी कुछ कहती है।
थोड़ा तो चुप रहो सुनो
यह खामोशी भी कुछ कहती है॥
मथा बहुत सागर का अंतर
बड़े यत्न से गरल निकाला।
बहुत वेदना ने तड़पाया
भरा तभी जीवन का प्याला।
पीड़ा को जब कहा सहेली
तब जाकर सूनापन बोला -
अधर मौन दो नयन निमीलित
मदहोशी भी कुछ कहती है।
थोड़ा तो चुप रहो सुनो
यह खामोशी भी कुछ कहती है॥