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खार खारों से जरा ऐसे भी खाया जाए / राम नाथ बेख़बर

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खार खारों से जरा ऐसे भी खाया जाए
बाग़ में फूल हर इक सिम्त खिलाया जाए।

प्यार का ऐसा चलन फिर से चलाया जाए
अश्क़ अब गैरों के ग़म में भी बहाया जाए।

चल के जिस राह पे बस वक़्त ही ज़ाया जाए
यार उस राह पे अब और न जाया जाए।

फूल है शाख़ है और शाख़ पे दो पंछी भी
आओ गुलशन को जरा और सजाया जाए।

रात काली है यहाँ गाँवों में नगरों में भी
चाँद तारों को चलो ढूँढ़ के लाया जाए।

थोड़ी सी धूप हो थोड़ी सी जहाँ छाया हो
ऐसे माहौल में इक गाँव बसाया जाए।

बेख़बर फूल को खिलते ही लुटाया इसने
यार इस पेड़ को जब तब न हिलाया जाए।