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खालीपन भर लें / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
सुनो, अगर फुरसत हो तो
हम कुछ ऐसा कर लें
बिना बात ही लड़ें
और ये खालीपन भर लें I
पैर पटककर चलें
अकड़ में मुंह फेरे हम बैठें,
छातों जैसे तनें
और फिर रस्सी जैसे ऐंठें;
रूठें
मनें
हँसें
रोयें
जीवित हो-हो मर लें I
जो भी बर्फ़ जमी है
अपने बीच उसे पिघलायें,
आग, हवा, पानी बन-बनकर
जलें
बहें
लहरायें
आँखों के प्रश्नों के हम
होंठों से उत्तर लें I
चुप्पी के विषधर
जो लिपटे हैं
अपनी संज्ञा पर,
असर न कर दें वे
अपने इस ह्रदय और प्रज्ञा पर;
इन्हें कीलने को
अभिमंत्रित
गीतों के स्वर दें I